⇶ मन की तानाशाही ⇶
इस कहानी को वही पढ़े जो समझे ।
राजा परीक्षित ने वेदव्यास से प्रश्न किया कि क्या मेरे बुजुर्ग मन के इतने ग़ुलाम थे कि इसे काबू करने में असमर्थ रहे ? वेदव्यास ने जवाब दिया कि राजा ! मन लज्जत का आशिक है और बहुत बलवान भी है । इससे छूटने का कोई उपाय नहीं। फिर वेदव्यास ने कहा, "अच्छा, मैं तुझे पहले ही बता देता हूं कि आज से 3 महीने बाद तेरे पास एक सौदागर घोड़ा लाएगा, उसको न खरीदना । अगर ख़रीद भी लिया तो उस पर सवारी∞ ना करना । अगर सवार भी कर लिया तो पूरब दिशामैं Online Business भी करता हूँ ,आप शांति से इस पेज को भी देख सकते है। 3 महीने के बाद एक सौदागर घोड़ा लाया, ऐसा घोड़ा राजा ने कभी देखा नहीं था। सेनापति, वजीरो ने तारीफ की और कहा कि महाराज ख़रीद लो, सवारी न करना, बाहर के राजा आकर देखेंगे । तबेले का श्रृंगार तो रहेगा, राजा ने वह घोड़ा ख़रीद लिया । Follow me
राजा ने सोचा कि घर ले चलता हूं, इसके साथ शादी नहीं मन के बड़े-बड़ों की मिट्टी पलीत की है।पराशर, विश्वामित्र, श्रृंगी ऋषि और अन्य कई ऋषि-मुनि मन के वश में आकर गिर गए । पुराणों को पढ़कर देखो। हमारी धार्मिक पुस्तकें कहती है कि जो ताकत मन को वश में करती है वह मनुष्य के अंदर है। जब 9 दरवाज़ों को खाली कर के ऊपर रूहानी मंडलों में पहुँचकर उस नाम रूपी अमृत को पियोगे तो मन वश में आएगा ।
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गुरुवार, 29 अगस्त 2019
आपको समझना बहुत कठिन है।
समंदर पार है आपकी इरादे
झूठे वादों की सजा
मैं Online Business भी करता हूँ ,आप शांति से इस पेज को भी देख सकते है।
बुल्ले शाह ने कहा, "पहले आप मेरे एक मुकदमे का फैसला कर दो, फिर जो आपकी मर्ज़ी हो करना ।" उन्होंने पूछा, "तेरा मुकदमा क्या है ? तब बुल्ले शाह ने कहा, "अगर कोई आदमी रोज कहे कि मैं अमुक चीज तुझे आज दूंगा, कल दूंगा, यहां दूंगा, वहां से दूंगा, लेकिन दे कुछ नहीं बल्कि 40 साल इसी तरह चलता रहे , आप उस पर क्या फतवा लगाओगे ?" वह कहने लगे," ऐसे व्यक्ति को जिंदा जला देना चाहिए ।" यह सुनकर बुल्ले शाह ने कहा कि आप सब को जिंदा जला देना चाहिए क्योंकि आपकी सरीयत वालों ने 40 साल वादे किए लेकिन दिया कुछ नहीं । जब लाजवाब होकर अपने-अपने घर चले गए । तब बुल्ले शाह ने कहा ;
मेला नाम विक्लाम है,आपका नाम क्या है ।
अनेक लोग अपने ज्ञान का प्रदर्शन करके अपनी प्रशंसा करवाने का प्रयास करते हैं पर वे धन्य हैं जिन्होंने प्रभु प्रेम के लिए अपने मन को अन्य सभी इच्छाओं से खाली कर दिया है।
जिक्र है कि बुल्लेशाह बड़ा आलिम-फाजिल था। 40 साल की खोज की, बहुत से शास्त्र और धार्मिक किताबें पढ़ी, अनेक महात्माओं और नेक लोगों से वार्तालाप की लेकिन कुछ हासिल ना हुआ। आखिर उसको एक मित्र ने जो परमार्थ में काफी आगे था और जिसे बुल्लेशाह की हालत का ज्ञान था, कहा,"भाई साहब, किताबों से क्यों माथा-पच्ची करते हो, यह सब बेकार है। इनायत शाह के पास जाओ। शायद वे परमार्थि खोज में तुम्हारी मदद कर सकें।'' जब उनके पास गया, उन्होंने रास्ता बताया तो अंदर पर्दा खुल गया। पर्दा तो खुला ही था, क्योंकि अंदर प्रेम था।
जब पर्दा खुला तो उसने भी कार्य किये, जिनको बाहर की आंखे रखने वाले अनुचित समझते हैं क्योंकि म***** और काज़ी तो शरीयत को ही परमार्थ समझते हैं पर सच्चे या आंतरिक भेद के बारे में वे बिलकुल बेखबर है । जब शरीयत वाले लोगों ने सुना तो कहा की यह कुफ्र कर रहा है। इस पर फतवा लगाना चाहिए। सारे इकट्ठा होकर बुल्ले शाह के पास गया और कहा कि तुम ऐसी बातें करते हो जो शरीयत के विरुद्ध है । क्या आप अपने पक्ष में कुछ कहना चाहते हो ?
बुल्ले शाह ने कहा, "पहले आप मेरे एक मुकदमे का फैसला कर दो, फिर जो आपकी मर्ज़ी हो करना ।" उन्होंने पूछा, "तेरा मुकदमा क्या है ? तब बुल्ले शाह ने कहा, "अगर कोई आदमी रोज कहे कि मैं अमुक चीज तुझे आज दूंगा, कल दूंगा, यहां दूंगा, वहां से दूंगा, लेकिन दे कुछ नहीं बल्कि 40 साल इसी तरह चलता रहे , आप उस पर क्या फतवा लगाओगे ?" वह कहने लगे," ऐसे व्यक्ति को जिंदा जला देना चाहिए ।" यह सुनकर बुल्ले शाह ने कहा कि आप सब को जिंदा जला देना चाहिए क्योंकि आपकी सरीयत वालों ने 40 साल वादे किए लेकिन दिया कुछ नहीं । जब लाजवाब होकर अपने-अपने घर चले गए । तब बुल्ले शाह ने कहा ;
परमार्थ में इल्म कि नहीं, और अमल की जरूरत है ।
आज अगर लेट करेंगे,तो कल भी आप लेट ही रहेंगे, !
उठाओ कैमरा दिखा दो दुनिया को"" कि आपमे भी कुछ बात है ।
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मंगलवार, 27 अगस्त 2019
देखने वालों ने तो क्या-क्या नहीं देखा
⤪ मालिक सब देखता है ⤭
ऐसा कोई स्थान नहीं जहां मालिक नहीं है । तेरी बादशाहत से कहां जाऊँ ? तेरी हजूरी से भाग कर कहां जाऊँ ? यदि मैं आसमानों पर चढ़ जाऊँ,तू वहां भी मौजूद है। यदि पाताल में अपना डेरा तान लूं तो वहां भी तू है ।"
किसी महात्मा के पास दो आदमी नाम लेने आए। उसमें से एक अधिकारी था, दूसरा अनाधिकारी; महात्मा कमाई वाले थे। उन्होंने दोनों को एक-एक बटेर 🐦 दे दिया और कहा कि जाओ, इनको उस जगह जाकर मार लाओ, जहां कोई और ना देखें। उनमें से एक तो झट से पेड़ की ओट में जाकर बटेर को मार कर ले आया ।
मैं Online Business भी करता हूँ ,आप शांति से इस पेज को भी देख सकते है। जो दूसरा था वह उजार में चला गया।
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अब वह सोचता है कि जब मैं इसे मारता हूं तो यह मुझे देखता है और मैं इसे देखता हूं। तब तो हम दो हो गए तीसरा परमेश्वर देखता है, मगर महात्मा का हुक्म था इसे वहां मारो जहां कोई ना देखें । आखिर सोच - सोच कर बटेर को महात्मा के पास ले आया और बोला कि महात्मा जी मुझे तो ऐसी कोई जगह नहीं मिली जहां कोई ना देखता हो?곧 क्योंकि मालिक हर जगह मौजूद है। महात्मा ने कहा, मैं तुझे नाम दूंगा और दूसरे से कहा, जाओ, अपने
घर !
इसीलिए अगर मालिक को हर जगह हाज़िर-नाज़िर समझें, तो हम कोई एब, पाप या बुरा काम ना करें ।
घर !
इसीलिए अगर मालिक को हर जगह हाज़िर-नाज़िर समझें, तो हम कोई एब, पाप या बुरा काम ना करें ।
रविवार, 25 अगस्त 2019
जिंदगी के प्यास, करनी है पुड़ी आस
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कबीर साहिब ने देखा कि सख़्त गर्मी पड़ रही है और प्यास से तड़पता हुआ पपीहा नदी में गिरा पड़ा है, मगर नदी के पानी के लिए उसने अपनी चोच ना खोली। उसे देखकर कबीर साहिब ने कहा कि जब मैं इस छोटी - सी पपीहे की स्वाति बूंद के प्रति भक्ति और निष्ठा देखता हूं कि वह जान देनेे को तैयार है लेकिन नदी का पानी पीने को तैयार नहीं, तो मुझे सतगुरु के प्रति अपनी भक्ति तुच्छ लगने लगती है:
अगर शिष्य के हृदय में परमात्मा सतगुरु के प्रति पपीहे जैसी तीव्र लगन और प्रेम हो, तो वह बहुत जल्दी ऊँचे रूहानी मंडलों में पहुंच जाए ।
गुरुवार, 22 अगस्त 2019
प्रेम ⇝ घृणा
⇜ प्रेम से प्रेम,घृणा से घृणा ⇝
➤परमात्मा प्रेम है। जो प्रेम में डूबा हुआ है, वह परमात्मा में समाया हुआ है, और परमात्मा उसमें समाया हुआ है ।
कहते हैं एक बार की बात है अकबर बादशाह और बीरबल कहीं जा रहे थे।
छोटा सा कहानी है,लेकिन एक बात बोले मज़ा आ जायेगा ।मालूम
कहते हैं एक बार की बात है अकबर बादशाह और बीरबल कहीं जा रहे थे।कुछ फासले पर उन्हें एक जाट आता नजर आया। अकबर बादशाह ने बीरबल से कहा कि इसे देखकर अचानक मेरा मन कहता है कि इसे गोली मार दूँ ।देखें इसके दिल💗 में मेरे लिए क्या विचार आते हैं ? जब वह जाट उनके नज़दीक आया तो बीरबल ने बादशाह की ओर इशारा करते हुए उस जाट से पूछा कि भाई डरो नहीं सच - सच बताओ,
मैं Online Business भी करता हूँ ,आप शांति से इस पेज को भी देख सकते है। जब तेरी नजर इस आदमी पर पड़ी तो तेरे मन में क्या ख्याल आया था ? उस जाट ने कहा कि मेरा दिल चाहता था कि इस आदमी की दाढ़ी खींच लु। इस ख्याल की पुष्टि हो गई कि दिल को दिल से सीधा- राह होती है।
इसलिए कहते हैं कि अगर शिष्य गुरु को प्यार करेगा तो गुरु भी ज़रूर उसे प्यार करेगा ।
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बुधवार, 21 अगस्त 2019
जरूरी बातों पर ध्यान रखना
संत रबिदास का अमृत दान
परमार्थ भी जरूरी है, उधर वह महात्मा नीच जाति का है, अगर खुल्लम-खुल्ला जाता हूं तो राज्य पलट जाएगा, लोग विरुद्ध हो जाएंगे। दिल में प्रेम था । इसलिए सोचा कि कहीं संत रविदास अकेले मिले तो उससे नाम ले लु। आखिरकार एक दिन ऐसा मौका आया, जब कोई त्यौहार था और सारी प्रजा गंगा स्नान के लिए चली गई थी। इधर राजा अकेला था, उधर संत रविदास का मोहल्ला सुना सा था, कोई भी घर पर नहीं था। राजा छुपकर संत रविदास के घर गया और अर्ज की," गुरु महाराज ! नाम दे दो ।" रविदास ने चमड़ा भिगोने वाला कुंड में से पानी का एक चुल्लू भर कर राजा की तरफ बढ़ाया और कहा "राजा! ले यह पानी पी ले।" राजा ने हाथ आगे करके ले तो लिया लेकिन नीचे गिरा दिया । मोची का, चमड़ा वाला पानी क्षत्रिय राजपूत कैसे पीता, रेशमी कुर्ता पहना हुआ था, इधर -उधर देखा और पानी को बाहों के बीज से नीचे गिरा दिया; मन में सोचा कि उसने तो आज मुझे चमाड़ ही बना देता। बड़ी मुश्किल से बचा हूं। रविदास जी ने देखा लेकिन ज़ुबान से कुछ ना कहा। राजा चुपचाप सिर झुका कर झोपड़ी से बाहर आ गया। इधर उधर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा, ऐसा ना हो कि कोई देख ले और सब को पता चल जाए कि राजा नीच मौसी के घर जाता है। पर सब लोग सभी त्योहार में व्यस्त थे तब गलियां खाली थी। राजा जल्दी-जल्दी अपने महल में वापस आ गया उसी वक्त धोबी को बुलाया और हुक्म दिया कि इसी वक्त इस कुर्ते को घाट पर जा कर धो दो। धोबी कुर्ते को घर ले गया, उसने दाग उतारने की बहुत कोशिश की पर सब कोशिश व्यर्थ हो गई, फिर अपनी लड़की से कहा कि यह जो दाग है इनको मुंह में लेकर चूसो कि यह निकल जाए और कुर्ता जल्दी साफ हो जाए, ताकि राजा नाराज़ ना हो। लड़की मासूम थी वह दाग चूस कर थूकने की बजाय अंदर निगलती गई नतीजा यह हुआ कि लड़की का अंदर पर्दा खुल गया, अब वह ज्ञान ध्यान की बातें करने लगी, धीरे-धीरे सारे शहर में खबर फैल गई कि धोबी की लड़की महात्मा है। आखिर राजा तक बात पहुंच गई। दिल में लगन लगी ही थी तो एक रात वह धीरे-धीरे धोबी के घर जा पहुंचा। लड़की राजा को देखकर हाथ जोड़कर उठकर खड़ी हो गई राजा ने कहा देख बेटी मैं तेरे पास भिखारी बन कर आया हूं। मांगता बन कर आया हूं राजा बन कर नहीं लड़की ने कहा मैं आपको राजा समझकर नहीं बल्कि मुझे जो कुछ मिला है, आपकी बदौलत मिला है" राजा ने हैरान होकर पूछा कि मेरी बदौलत लड़की ने कहा जी हां राजा ने कहा वह कैसे ! तो लड़की बोली मुझे जो कुछ मिला है आपकी कुर्ते से मिला है और जो भेद था आपकी कुर्ते में था।"मैं Online Business भी करता हूँ ,आप शांति से इस पेज को भी देख सकते है। अब राजा रोता है और अपने आप को कोसता है कि धिक्कार है मेरे राजपाट को, धिक्कार है मेरे क्षत्रिय होने को ! तेरा बुरा हो जिसने मुझे परमार्थ को परमार्थ से खाली कर दिया जब ठोकर लगी तो लोक -लाज, जाती- पाती कि परवाह न करता हुआ सीधा रविदास जी के पास पहुंचा और हाथ जोड़कर अर्ज की गुरूदेव वहीं चरणामृत फिर बक्सों ।" रविदास ने कहा, 'अब नहीं। जब तू पहली बार आया तो मैंने सोचा कि तू क्षत्रिय राजा होकर नीच मोची के घर आया है, तुझे वह चीज जो कभी नष्ट न हो। वह कुंड का पानी नहीं था, अमृत था, सचखंड से आया था । मैंने सोचा कि मैं रोज पीता हूं, आज राजा भी पी ले। लेकिन तूने चमड़े का पानी समझकर घ्रना की और कुर्ते में गिरा लिया।" रविदास जी ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, "चिंता ना करो, मैं तुझे अब नाम सुमिरन दूंगा। प्रेम और विश्वास से अभ्यास करना । वह अनमोल खजाना तुम्हें अंदर ही मिल जाएगा॥" राजा को समझ आ गई और विश्वास हो गया। परमार्थ का शौक था, नाम लेकर कमाई की और महात्मा बन गया। राजा सालबीर सिंह के शब्द गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है। वह राज्य भी करता था और नाम भी जता था ।आप लोग को तो कहना हि बेकार है,अगर आपके पास भी कहानी या कुछ येसा है जिसे बता अपने दिल को तस्लली दे सके,एक फोटो के साथ मेल कीजिए kumarvikarant86@gmail.com |
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