no-5🔃 हजारों बिजलियॉ टूट परी 🔃
गुरू के लिए आत्मा को ऊपर no-7 ले जाना मुश्किल नही,लेकिन उचित अभ्यास के बिना ऊपर ले जाने से आत्मा का नुकसान होता है ।एक रेश्मी कपड़े को ,जो कांटेदार झारियो पर फैला हुआ है ,एकाएक खींचा जाये तो वह फटकर टुकड़े -टुकड़े हो जायेगा ।उसी तरह आत्मा को ,जो कर्मो के कांटो मे फंसी हुई है और शरीर के रोम-रोम मे फैली हुई है, गुरू के प्रेम द्रुरा धीरे-धीरे निर्मल करना चाहिए । no-10
no-1 एक बार बाबा जयमल सिंह को पास कुछ पंडिताई शास्त्रों के कुछ अर्थ को लेकर उनका आपस में विवाद था। Follow me
कुछ पंडित कहते थे कि अर्थ ऐसे नहीं ऐसे हैं, तो कुछ कहते थे कि ऐसे नहीं ऐसे हैं, उन्होंने कहा क्योंकि बाबा जी की रूहानी no-6 मंडलों में रसाई है,no-8 इसलिए स्पष्टीकरण के लिए उसके पास चले, आपने उनके सामने जाकर अपना संसद प्रकट किया।
महाराज जी कहे कि मैं संस्कृत नहीं जानता ?"?"?
आखिर उन्हें तरीके साथ समझा दिया,,, महाराज जी ने कहा कि विद्वानों के नाम की कमाई करना मुश्किल है। एक को छोड़ बाकी सारे पंडित चले गए, वह कहने लगा मुझे नाम दे दो !
3 महाराज जी ने उसे नाम दे दिया, 6 महीने बाद आया और कहने लगा कि सूरत- शब्द योग का तरीका अच्छा नहीं है, करीब 9 महीने बाद फिर आया और बोला कि आप मुझे दिखाओ कि अंदर क्या है।
तब महाराज जी ने कहा नाम की कमाई करो, फिर वह वापस चला गया। एक बार बाबा जी महाराज पेंशन लेने जा रहे थे। रास्ते में वही पंडित मिला और कहने लगा 2 कि यहां कोई नहीं है, मुझे ज़रा सा भी दिखा दो,, महाराज जी ने कहा तेरा नुकसान हो जाएगा । वह बोला कि ज़रा सी तवज्जो दे दो,, जब महाराज जी ने ज़रा वजूद दे दी तो वह गिर पड़ा और चिल्लाया की संभाल लो महाराज,!
अंदर से ख्याल हटा दो जब हटाया 6 और ख्याल बाहर आ गया तो उसने कहा कि अंदर हजारों बिजलियां टूट पड़ी। तब महाराज जी ने कहा कि तेरी उम्र 3 साल बाकी है, चाहे तू भजन कर ले, चाहे दुनिया का काम कर ले फिर वह चला गया संतों के साथ ज़िद नहीं करनी चाहिए। बल्कि उनकी 9 मौज़ में रहना चाहिए ।
मेरे अंदर भी ,,,,,,,,,,,,,मै अपनी बात बाद मे,
पहले आपकी पाद......पहले आपके काम कि बात ,अगर आपके पास कुछ अलग तरह कि कहानी है ,जैसे आपके मन कि बात तो आप बिना अपना फ़ेस दिखाये 4 आप मुझे मेल कर सकते है।
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