⇎ गठरीओं की भेंट ⇎
वे लोग धन्य हैं जिनका मन पवित्र है, क्योंकि केवल उन लोगों को ही प्रभु का दीदार हासिल होगा l
मनुष्य के अंदर दो बड़े गुण हैं । एक भय और दूसरा भाव यानी डर और प्यार जिसको परमात्मा का डर है,उसको परमात्मा से प्यार भी है जिसको परमात्मा से प्यार है उसको परमात्मा का डर भी है l Follow me
कहा जाता है कि 1 दिन एक बकरियां चराने वाला चरवाहा मालिक के प्यार में आकर कहने लगा," हे परमात्मा, अगर तू मुझे मिले तो मैं तुझे दूध पिलाउंगा,मक्खन खिलाऊंगा, लैलून कि ऊन का कंबल बनाकर पहनाऊंगा । इस तरह बहुत कुछ कहता रहा। अभी वह अपनी बात खत्म कर ही रहा था कि इत्तेफ़ाक से वहां एक फकीर गया । उसको चरवाहे की बात बहुत बुरी लगी । उसने उस ग़रीब चरवाहे से कहा,"क्या बकवास कर रहे हो ? यह सब मूर्खों वाली बातें हैं। तुमने बहुत बड़ा गुनाह किया है ।चरवाहे ने हैरानी से पूछा," क्या गुनाह ? क्यों हज़रत ! मेरी ख़ुदा के आगे की हुई यह साधारण सी विनती गुनाह कैसे हो सकती है ?"
फकीर ने कहा, "ज़रा सोच, तू क्या कर रहा है तू ने सचमुच ख़ुदा की निंदा करके गुनाह किया है ।" उसने सोहन से कहा कि परमात्मा ना दूध पीता है,न मक्खन खाता है और ना ही कंबल ओढता है । सोहन ने पूछा,"तो क्या मैंने गुनाह किया है ? फकीर ने कहा कि हां।
फकीर तो अपनी बात कहकर चला गया, बाद में सोहन पछतावे में आकर बहुत रोया और कहने लगा, "परमात्मा, मैंने गुनाह किया है, तू मुझे बख्श दे । "रोते-रोते उसका पर्दा खुल गया। परमात्मा ने दर्शन दे दिए ।
वह कहीं दूर तो था नहीं, उसके अंदर ही था। परमात्मा ने कहा," तू घबरा मत। मैं तेरा मक्खन भी खाऊंगा, दूध भी पी लूंगा और कंबल ही ओढ लूंगा । उधर फकीर पर परमात्मा की नाराज़गी जाहिर हुई। परमात्मा ने कहा, "तूने मेरे एक प्यारे का दिल दुखाया है। जा उससे माफ़ी मांग फकीर सोहन के पास आया और कहने लगा मुझे माफ़ी दे दो, मैंने ग़लती की है ।सोहन हंस कर बोला भाई जो परमात्मा तेरे पास आया है। वह मेरे पास भी आया आ गया है।
सो जिसको प्रभु से प्यार है, उसे प्रभु का भय भी है। हम एक दूसरे की निंदा करते हैं क्योंकि हमें मालिक का डर और प्यार नहीं। हमारे अंदर उसका डर और तैयार होना चाहिए । अगर मालिक से मिलना है तो गुरु के पास जाकर नाम की कमाई करनी होगी, फिर वह दया करके हमारे अंदर भाव और भाव पैदा कर देगा ।


कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें