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रविवार, 25 अगस्त 2019

जिंदगी के प्यास, करनी है पुड़ी आस


⇛ पपीहे का प्रण ⇚

          एक दिन कबीर साहिब गंगा के किनारे घूम रहे थे । उन्होंने देखा कि एक पपीहा
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प्यास से निढाल होकर नदी में गिर गया है। पपीहा स्वाति - बूंद के अलावा दूसरा पानी नहीं पीता । उसके आस-पास चाहे दरिया, समुद्र, कुएँ तालाब भरे-पड़े हो और पपीहे को कितनी ही प्यास क्यों ना लगी हो, वह  मरना मंज़ूर करेगा, लेकिन किसी दूसरे पानी से अपनी  प्यास नहीं बुझायेगा

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 कबीर साहिब ने देखा कि सख़्त गर्मी पड़ रही है और प्यास से तड़पता हुआ पपीहा नदी में गिरा पड़ा है, मगर नदी के पानी के लिए उसने अपनी चोच ना खोली। उसे देखकर कबीर साहिब ने कहा कि जब मैं इस छोटी - सी पपीहे की स्वाति बूंद के प्रति भक्ति और निष्ठा देखता हूं कि वह जान देनेे को तैयार है लेकिन नदी का पानी पीने को तैयार नहीं, तो मुझे सतगुरु के प्रति अपनी भक्ति तुच्छ लगने लगती है:

अगर शिष्य के हृदय में परमात्मा सतगुरु के प्रति पपीहे जैसी तीव्र लगन और प्रेम हो, तो वह बहुत जल्दी ऊँचे रूहानी मंडलों में पहुंच जाए ।
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