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⇶ मन की तानाशाही ⇶
इस कहानी को वही पढ़े जो समझे ।
राजा परीक्षित ने वेदव्यास से प्रश्न किया कि क्या मेरे बुजुर्ग मन के इतने ग़ुलाम थे कि इसे काबू करने में असमर्थ रहे ? वेदव्यास ने जवाब दिया कि राजा ! मन लज्जत का आशिक है और बहुत बलवान भी है । इससे छूटने का कोई उपाय नहीं।
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| बाहूबली मूवी मे ये लड़की वाला सीन तो याद होगा । |
तुम्हें जल्दी ही इसकी समझ आ जाएगी । राजा परीक्षित ने कहा कि इसका कोई उपाय ? वेदव्यास ने कहा कि कोई नहीं । परीक्षित को इस बात का विश्वास न हुआ ।
फिर वेदव्यास ने कहा, "अच्छा, मैं तुझे पहले ही बता देता हूं कि आज से 3 महीने बाद तेरे पास एक सौदागर घोड़ा लाएगा, उसको न खरीदना । अगर ख़रीद भी लिया तो उस पर सवारी∞ ना करना । अगर सवार भी कर लिया तो पूरब दिशा
की ओर मत जाना ; अगर पूरब दिशा की ओर चला भी गया तो तुझे एक लड़की 👡मिलेगी, उससे बात ना करना; अगर बात भी कर ली तो उसको घर氤 ना लाना; अगर' घर' भी' ले 'आया 'तो 'उससे शादी 'ना 'करना। अगर शादी भी कर लिया तो उसके' बातों' में' मत' आना' । अब चला जा ! मैंने तुझे मन की शक्ति के बारे में सचेत कर दिया है, अब तू इसका इलाज कर ले।"😏
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3 महीने के बाद एक सौदागर घोड़ा लाया, ऐसा घोड़ा राजा ने कभी देखा नहीं था। सेनापति, वजीरो ने तारीफ की और कहा कि महाराज ख़रीद लो, सवारी न करना, बाहर के राजा आकर देखेंगे । तबेले का श्रृंगार तो रहेगा, राजा ने वह घोड़ा ख़रीद लिया ।
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कुछ दिन बाद बादशाह ने तारीफ की कि वह घोड़ा बहुत अच्छा है, इसमें कोई ऐब नहीं है, आपकी सवारी के लायक है। राजा ने मन में कहा,"अच्छा सवार हो जाते हैं, पूर्व दिशा को ओर नहीं जाएंगे।" जब घोड़े पर सवार होकर निकला, घोड़ा मुंहजोड़ होकर पूर्व दिशा में जंगल की ओर चल पड़ा ।आगे एक जगह एक खूबसूरत स्त्री बैठी रो रही थी । राजा ने घोड़े से उतर कर रोने का कारण पूछा, तो वह कहने लगी,"मेरी स्नेही और रिश्तेदार मुझसे बिछड़ गए हैं । यहाँ जंगल में अकेली हूं मुझे समझ नहीं आती कि कहां जाऊँ। मुझे साथ ले चलो ।" राजा ने कहा," अगर मैं तुम्हें अपने साथ राज दरबार लेकर जाता हूं तो मैं तुम्हें सारी सुविधाये प्रदान कर सकता हूं पर मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि मैं तुम्हें साथ ले जाऊँ या नहीं ।" कहने लगी, "यहां जंगल है मुझे भालू - शेर खा जाएंगे। आपको पाप लगेगा ।
राजा ने सोचा कि घर ले चलता हूं, इसके साथ शादी नहीं
करूँगा । जब घर लाया, कुछ दिनों बाद लोगों ने तारीफ की कि बड़ी नेक है, बड़ी सुशील है, आपके लायक है। राजा ने शादी कर ली । कुछ दिन गुज़र गए तो कहने लगी कि एक आम आदमी भी जब शादी करता है तो अपनी बिरादरी को खाना खिलाता है। राजा ने पूछा,''तू क्या चाहती हैं ? बोली, "ऋषि-मुनियों, अच्छे पुरुषों को बुलाकर खाना खिलाओ।"जब सब ऋषि मुनी आकर बैठे गए तो स्त्री ने राजा से कहा,"मैं आपकी अर्धांगिनी हूं। मैं भी आपके साथ सेवा करूंगी।" अब ऋषि-मुनी
जंगल के रहने वाले थे, रोटी परोसते-परोसते कहने लगी, यह सब बदमाश है और मेरी ओर देखते है । राजा को क्रोध आया, तलवार लेकर सब को क़त्ल कर दिया । उसी वक्त वहां वेदव्यास प्रकट हुए और बोले,बता राजा ! तू क्या कहता है ।" राजा परीक्षित ने शर्म से अपना सिर झुका लिया।
मन के बड़े-बड़ों की मिट्टी पलीत की है।पराशर, विश्वामित्र, श्रृंगी ऋषि और अन्य कई ऋषि-मुनि मन के वश में आकर गिर गए । पुराणों को पढ़कर देखो। हमारी धार्मिक पुस्तकें कहती है कि जो ताकत मन को वश में करती है वह मनुष्य के अंदर है। जब 9 दरवाज़ों को खाली कर के ऊपर रूहानी मंडलों में पहुँचकर उस नाम रूपी अमृत को पियोगे तो मन वश में आएगा ।
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