🐦 पक्षी का प्रभु प्रेम 🐦
प्रेम और नम्रता के साथ प्रभु से दिल लगाओ प्रभु और केवल प्रभु को पाने की सच्ची तरप ही काफी है ।
एक फकीर था,जो अपने आप को पैगंबर समझता था। एक बार उसके मन में ख्याल आया कि मैं पैगंबर हूं, ख़ुदा मुझसे खुश है।
मुझसे बढ़कर उसका कोई और प्यारा नहीं। उसने अर्ज की या ख़ुदा जो मुझसे भी ज्यादा तेरा प्रेमी है मुझसे ज्यादा तेरा ध्यान करता है,
मुझे बता मैं उससे मिलना चाहता हूं।
ख़ुदा ने कहा,"ये फकीर बड़े-बड़े प्रेमी हैं फकीर बोला कोई एक बताओ,
ख़ुदा ने कहा कि आदमी तो क्या मैं एक पक्षी बताता हूं।
वह पहाड़ पर रहता है,उसके पास जा । फकीर ने अर्ज की कि मैं उसकी बोली नहीं समझता। ख़ुदा ने कहा,"जा ! मैं तुझे वर देता हूं कि तू उसकी बोली समझ लेगा ।"मैं Online Business भी करता हूँ ,आप शांति से इस पेज को भी देख सकते है।
खैर फकीर वहां गया, पक्षी को बैठा देखा । फकीर ने उससे कहा,"कोई खुदा की बात सुना।"पक्षी बोला, "ऐ फकीर ! मुझे फुर्सत नहीं। मैंने इतनी बात भी तेरे से इसलिए की है कि तू मेरे प्रियतम के पास से आया है।" फकीर ने कहा, "तू क्या काम करता है जिससे तुझे फुर्सत नहीं है? पक्षी ने जवाब दिया, "मैं दिन-रात परमात्मा का ध्यान करता हूं, सिर्फ एक तकलीफ़ है।"
फकीर ने पूछा कि वह कौन सी तकलीफ़ है ? उसने कहा," यहां से कुछ दूर एक तालाब है, वहां जाकर मुझे पानी पीना पड़ता है।"फकीर ने पूछा कि तालाब कितनी दूर है? उसने कहा कि यह मेरे सामने जो गेहूं का खेत है, इसके बगल में है।
फकीर बोला," यह तो कोई दूर नहीं है।" इस पर पक्षी ने कहा," मैं तुझे क्या बताउं? मेरे लिए तो इतना भी मुश्किल है, क्योंकि सुमिरन छोड़कर वहां जाना पड़ता है। "फकीर ने कहा कि अगर कोई और सेवा हो तो बता ।
उसने कहा, "बस तालाब को मेरे पास ला दो ।"फकीर ने कहा कि यह तो नहीं हो सकता। फिर कोई और सेवा नहीं है",कहकर पक्षी सुमिरन करने लग गया ।
मतलब तो यह है कि जो ख़ुदा के आशिक हैं, उनका उसके साथ इतना प्यार होता है कि पल-पल उनका ध्यान ख़ुदा में ही लगा रहता है। जिस तरह अगर कोई कौवा समुद्री जहाज़ पर बैठ जाए और जहाज़ चल पड़े तो वह कहीं और नहीं जा सकता। नीचे समुद्र है, ऊपर आसमान। उड़ता है और वापस जहाज़ पर ही आकर बैठ जाता है, और कोई जगह नहीं है। इसी तरह ख़ुदा के आशिकों का भी जहाज़ के कौवे जैसा हाल होता है ।If you don't like this story,so comment me.
your youngest brother Vikrant kumar.
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