जाने दो या जान लगा दो !
''मुर्दा खाने का हुक्म''
तू अपनी बुद्धि का सहारा ना लेना बल्कि संपूर्ण मन से प्रभु पर भरोसा रखना उसी को याद करके सब काम करना बस वह तेरा मार्गदर्शन जरूर करेंगे ।
एक बार गुरु नानक साहिब ने अपने सेवकों को मुर्दा खाने के लिए कहा । देखने में यह मुनासिब हुक्म नहीं था । हम मुर्दा छू जाने पर नहाते हैं । फिर मुर्दा खाए कौन ? एक भाई लहना खड़े रहे, बाकी सब शिश्य चले गए। यह सब को नामुनासिब हुक्म लगा था,
लेकिन भाई लहना को नहीं। जब वह मुर्दे के इर्द-गिर्द घूमने लगा तो गुरु साहिब ने उससे पूछा, ''क्या कर रहे हो।
''भाई लहना ने उत्तर दिया, ''हुजूर ! मुझे समझ नहीं आ रहा कि मुर्दे को किस तरफ से खाना शुरू करु । जब वह
खाने लगा तो देखता है कि वहां कोई मुर्दा नहीं था, बल्कि मुर्दे की जगह उसके सामने गुरु का प्रसाद, मीठा हलवा पड़ा था । गुरु नानक साहिब ने उनको गुरु - गद्दी का हकदार बना दिया
और वह भाई लहना से गुरु अंगद साहिब बन गए । अंगद का अर्थ है, ''गुरु का अपना अंग या हिस्सा''। इसी तरह जब
गुरु गोविंद सिंह ने अपने शिष्यों की परख की तब 5000 में से सिर्फ पांच प्यारे निकले ।
जब ग्रुरु परखता है तो बड़े-बड़े फेल हो जाते हैं। जीव का इम्तिहान में पास होना बड़ी मुश्किल बात है । गुरु किसी का इंतिहान न ले ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें