एक फकीर का जिक्र है । वह घोड़े पर बैठकर कहीं जा रहा था । उसका एक तालिब यानी शिष्य जंगल में उसकी याद में बैठा हुआ उसके दर्शन के लिए तड़प रहा था ।
फकीर जिधर घोड़ा ले जाना चाहे उधर न जाए, ''वह इधर करें तो घोड़ा उधर चला जाए, ''जब उधर करें तो घोड़ा इधर चला जाए, ''जब घोड़ा अपनी जिद पर अड़ा रहा तो महात्मा बोले, ''अच्छा'' जिधर तेरी मर्जी है ले चल,
तो वह घोड़ा सीधा जंगल की ओर लेकर चल पड़ा और 34 मिल जा कर रुक गया, आगे वह शिष्य बैठा हुआ था । मुर्शीद को देखकर उठ खड़ा हुआ ।
फकीर ने कहा यह सब क्या है ?'' शिष्य ने कहा कि आज मेरा दिल आपके दर्शन के लिए तड़प रहा था ।
सो शिष्य के प्यार में इतनी कशिश होनी चाहिए ।
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