''कबूतरों द्वारा शिक्षा''
जैसे कोई धातु जब तक पिघल कर पानी ना हो जाए, तब तक उसे कोई सांचा स्वीकार नहीं करता,... इसी प्रकार जब तक शिष्य के अंदर वह सच्ची तड़प और सच्चा प्यार ना हो, तब तक वह मालिक पर्दा नहीं खोलता |
जीवो को समझने के लिए महात्माओं के अलग- अलग तरीके होते हैं । जिक्र है कि एक बादशाह का लड़का पढ़ाई से जी चुराता था ।
उसको कबूतर रखने का बहुत शौक था एक दिन वहां एक महात्मा आ गए। बादशाह ने कहा, महाराज जी मेरा लड़का पढ़ाई से जी चुराता है और कबूतर का शौक रखता है । इस को हिदायत करो कि यह कुछ पढ़ लिख जाये । ''महात्मा ने बच्चे को बुलाकर पूछा, ''तेरे पास कितने कबूतर है ? ''लड़के ने कहा जी 20 महात्मा ने कहा कि नहीं 100 - 200 रख लो।
दोनों इनकी उड़ान देखेंगे ।'' लड़के ने कहा जी बहुत अच्छा !जब कबूतर आ गए तो महात्मा ने कहा,''यह तो बहुत सारे है।
इसके नाम रखने चाहिए।'' फिर उनके पर लिखा क, ख, ग, घ इसी तरह उसको पढ़ना - लिखना सिखा दिया ।
बच्चों को जबरदस्ती किसी काम या पढ़ाई में लगाने की जगह उसके मन की वृत्ति को अच्छी तरीके से समझ कर के उसके अनुसार ही शिक्षा का प्रबंध करना चाहिए ।
अब जैसे मैंने भी अपने दीदी के लड़के को पढ़ाने
की कोशिश की, तो हमने यह किया कि वह जहां पर सोता था , जहां पर खेलता था, मैंने उसके सामने कागज में पहाड़े को लिखकर लगा दिया, लेकिन कहा जाता है, बच्चे सुनकर ज्यादा सीख लेते हैं,
उसकी मम्मी, मतलब मेरी दीदी ने कहि की हो गया, तुम्हारे लिखे तो बच्चे पढ़ते ही नहीं,'' और 'बच्चे इन बातों' को सुनकर इन्हें हंसी मजाक में ले लिया,,'' उसकी मम्मी, मेरी दीदी कहती है कि बच्चे को पढ़ाना तुम्हारे बस की बात नहीं है, और बच्चे यह बातें को सुनकर मेरे लिखे गए पन्नों को फारकर फेंक दिया ।
बिज़नेस📂 ही बिज़नेस नजर आता है
,,,,,,,जब तक पृथ्वी तब तक हम,,,,,
,,,,,,,,,,मूर्ख को समझाना बेकार''''''''
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